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जनसमर्थन के लिए अब जम्मू का रुख, मध्यप्रदेश-गुजरात पर भी नजर

जनसमर्थन के लिए अब जम्मू का रुख, मध्यप्रदेश-गुजरात पर भी नजर

नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन को तेज करने के लिए किसान संगठनों ने मुहिम शुरू की है। देश भर के किसानों का जनसमर्थन जुटाने की दिशा में अब जम्मू-कश्मीर की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं। भारतीय किसान यूनियन (चढूनी) हरियाणा 5 जनवरी को जम्मू में बैठक कर केंद्र शासित प्रदेश के किसानों को आंदोलन में शामिल होने के लिए लामबंद करेगी। टीम चढूनी सोमवार को हरियाणा से जम्मू के लिए रवाना होगी। इसके बाद भाकियू की नजर मध्यप्रदेश और गुजरात पर है।

जम्मू के बाद इन दोनों राज्यों में सक्रिय किसान यूनियनों के साथ बैठक कर आंदोलन की अगली रणनीति तैयार की जाएगी। भाकियू हरियाणा के अध्यक्ष गुरनाम चढूनी मध्यप्रदेश और गुजरात के किसान नेताओं के साथ संपर्क में हैं। दिसंबर 2020 में यूनियन बिहार के किसानों के साथ बैठक कर उन्हें आंदोलन का हिस्सा बना चुकी है। अब जम्मू में बैठक कर स्थानीय किसानों से नए कानूनों के खिलाफ आंदोलन शुरू कराने की तैयारी है। जिसके तहत मंगलवार को वह जम्मू कश्मीर किसान यूनियन के प्रधान हामिद मलिक व अन्य किसान नेताओं के साथ जम्मू में मंत्रणा करेंगे।

गुरनाम सिंह ने बताया कि जम्मू में बैठक के बाद नए कानूनों के किसान विरोधी बिंदुओं को मीडिया के समक्ष भी रखा जाएगा। उनका मुख्य उद्देश्य जम्मू और कश्मीर के किसानों को वर्तमान आंदोलन में हिस्सेदारी बढ़ाने को लेकर प्रेरित करना है। बैठक प्रेस क्लब जम्मू में मंगलवार सुबह होगी। उन्हें अन्य राज्यों के किसान संगठनों ने भी बैठक का निमंत्रण दिया है।

किसानों की जान का मोल समझे सरकार - बैंस

भाकियू हरियाणा के प्रवक्ता राकेश बैंस ने कहा कि केंद्र सरकार किसानों की जान का मोल समझे। अभी तक 40 से ज्यादा किसानों की धरने पर मौत हो चुकी है। जब किसान ही नहीं बचेंगे तो फिर कानून किस पर लागू करेंगे। सरकार जल्दी अन्नदाता की मांगें मानकर आंदोलन को खत्म कराए।

किसान, पूंजीपतियों के बीच बनाया जाए संतुलन - मथाना

भाकियू नेता कर्म सिंह मथाना व सत्यवान नरवाल का कहना है कि केंद्र सरकार किसानों व पूंजीपतियों के बीच संतुलन बनाए। कानून सिर्फ पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए नहीं होने चाहिए। आंदोलन को मांगें पूरी कर तुरंत खत्म कराया जा सकता है। अड़ियल रवैये से आंदोलन और लंबा खिंचेगा। सरकार को यह बात समझनी होगी कि किसान पीछे हटने वाले नहीं हैं।



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